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Thursday, November 20, 2014

'एक अधूरा ख़त'

ता उम्र कुछ इस तरह लगी...
मुझे मेरी ज़िंदगी...
जैसे कोई अधूरा ख़त
अपने मुकम्मल होने की ख़्वाहिश में
मुझे आवाज़ दे रहा हो...
हाँ मैंने एक ख़त लिखा
एक अधूरा ख़त...मगर
अनकहे जज़्बात से जुड़ा
जिसमें मेरे दिल की हर धड़कन
एक शब्द है...और मेरी हर सांस
वो मात्रा जो उस शब्द को इक अर्थ दे
हर दिन जैसे कोई वाक्य
और मेरी ये ज़िंदगी कोई ख़त
'एक अधूरा ख़त'
यकीं मानो अगर कभी ये ख़त
तुम्हारे पास पहुँच जाता
तो मैं कभी भी किसी भाषा की
शब्दों की मोहताज ना होती
और मेरा अधूरापन खुद में
मुकम्मल होता....!!!

'रश्मि अभय' (11/11/2014)

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