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Thursday, November 20, 2014

अनकहा..........

बहुत कुछ कहा अनकहा 

रह गया था...

हमदोनों के बीच

वो भाव जिन्हें तुम 

निगाहों से नहीं समझ सके

उन्हें भला शब्दों में क्या समझ पाते

बस एक चुप्पी रह गई थी

जो चीख़ रही थी

मैंने उसकी आवाज़ को अनसुना कर दिया

जानती थी थककर खामोश हो जायेगी

मेरी हीं तरह...

मैंने अपने अनछूए भावों को

एक पोटली में बांध कर

ताखे पर रख दिया...

ये सोचकर कि शायद कभी तुम

इसे समझ सको......!!!

'
रश्मि अभय' (३ अप्रैल २०१३,४:३० पी एम)
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