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Friday, June 21, 2013

----चाहे जिस रंग में रंग दो----


'तुम' मुझे 'पागल' कहते हो
ठीक हीं कहते हो....

जो मुझे समझ ना पाये
उनको मैं पागल हीं लगूँगी
चाहे जिस रंग में रंग दो मुझे
मेरा अपना कोई रंग नहीं
जब चाहो मँझधार में छोड़ दो
मुझे तुमसे कोई जंग नहीं
नींद को तरसी आँखें मेरी
जब जो चाहे ख्वाब तुम ले लो
चाभी भरो जी भर खेल के लो
फिर एक रैपर में पैक कर के रख दो
रूप सजाओ,शृंगार करो
प्यार करो आँखों में बसाओ
और जब दिल भर जाए
दिल से उठा कर ताक पर रख दो




'तुम' मुझे 'पागल' कहते हो
ठीक हीं कहते हो....

-----मेरे रगों में-----


गुजरे हुए मौसम की खोई हुई ख़ुशबू
यूँ मेरे रगों में उतर आई...
कि जैसे कोई भूला हुआ रूपहला ख्वाब
एक हकीकत बनकर सामने आ जाए
जैसे सहरा की जमीं पर पहली बारिश...


जैसे कोई बिछड़ा हुआ शख्स
इबादत बन कर जहां पर छा जाये
जैसे किसी ने बहुत हल्के से
दिल के दरवाज़े पर दस्तक दी हो
और बड़ी नरमी के साथ....
यादों के बंद दरीचों को खोला हो
कुछ इस तरह कि हर दरीचे की
अलग-अलग ख़ुशबू से मेरे घर का आँगन
रंग-दर-रंग छलक जाए....!!!!

हम तुम्हारे मुंतज़िर हैं.....



उफ़्फ़ क्या मौसम है
बारिश की बूंदे
पेड़ो की हरी शाख पर 
जब छन छन गिरती है
तो यूँ लगता है कि
तुम्हारी हंसी
मेरे कानों में गूंज रही हो
अपनी भिंगी लटों को
झटकते हुए
मैं एक बार फिर
तुम्हारे तसव्वुर में
हौले से मुसकुराती हूँ....
हवा जब मेरी ओढनी से
अठखेलियाँ करता है
तो ओढनी का हल्का
गुलाबी रंग मेरे चेहरे पर
बिखर जाता है...
मेरे दर से तुम्हारे दरवाजे तक
जो एक रास्ता जाता है
वो खुशबू से भर जाता है...
जैसे मेरी राह ताक रहा हो
रश्मि अब आ भी जाओ
हम तुम्हारे मुंतज़िर हैं.....!!!!

रश्मि अभय (१९/६/२०१३,८:१५ पी एम)