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Monday, January 7, 2013

तुम्हारे अथाह प्रेम को..................

सुनो,मैं जानती हूँ तुम्हारे अथाह प्रेम को,
मैं इसे किसी परिधि में नहीं बांध सकती,
ये भी जानती हूँ कि मृत्यु सत्य है,
और जीवन नश्वर...
शायद यही सोच मुझे विचलित करती है,
सुनो,मुझे भी तुमसे अथाह प्रेम है,
फर्क सिर्फ इतना है कि तुम प्रेम को,
शब्दों का आवरण पहना देते हो,
और मेरा प्रेम मूक है...
तुम्हारे बिना कभी जीवन कि इच्छा नहीं हुई,

मगर आज ना जाने क्यूँ ये कहना चाहती हूँ,
कि अगर जीवन का अंत हीं शाश्वत है,
तो मुझसे पहले तुम चले जाओ...
क्यूँ देख रहे हो मुझे यूं बिस्मित होकर,
सुनो,मैं तो औरत हूँ,
जन्म से ही सुख-दुख सहने कि क्षमता है मुझमे,
जी लूँगी ये जीवन भी मैं तुम्हारे बिना,
एक जलावतन कि तरह...
मगर तुम कैसे जी पाओगे ??
कौन समझ पायेगा तुम्हारी खामोश जरूरतों को,
नहीं...नहीं तुम नहीं सह पाओगे,
इसलिए तुम चले जाना,
और जीने देना मुझे इस मृत्युप्राय जीवन को...!!!
रश्मि अभय

........बोलो ना.......


मैंने सुना है तुम्हारी दुआओं में बहुत असर है,
सुनो...बगल में एक इमामबाड़ा है,
वहाँ पर सबकी दुआएं कबूल होती हैं,
एक बात कहूँ...आज जुम्मा है,
तुम तो जाओगे हीं,
एक गुज़ारिश है,
देखो इंकार मत करना,
थक गई हूँ मैं ज़िंदगी से लड़ते हुए,
आज तुम अपनी दुआओं में,
मेरे लिए थोड़ा सा सुकून लाना,
खुदा से कहना कि मैं चैन की नींद सोना चाहती हूँ,
एक ऐसी नींद जो कभी टूटे नहीं,
वो मुझे दे दे...बोलो ना...
तुम मुझे अपनी दुआओं में शामिल करोगे ना :)

लाजवंती


एक तेज़ हवा का झोंका,
और तुम्हारे होने का एहसास,
यूं जैसे हौले से,
छु गए हो तुम मुझे,
तुम्हारे होने के गुमाँ से हीं,
मैं अपने आप में सिमट गई हूँ,
मानो जैसे किसी ने,
लाजवंती के पौधे को,
धीरे से छु लिया हो,
तुम्हारे स्पर्श का एहसास,
मदहोश कर गया है मुझे,
बोझिल हो गई हैं पलकें मेरी,
और लरज़ उठे हैं होंठ मेरे,
जबकि मुझे भी ये पता है,
कि तुम यहाँ नहीं हो,
फिर भी तुम्हारी यादों की दुनियाँ में,
मैं खुद को ढूंढ लेती हूँ,
और जी लेती हूँ हर उस पल को,
जो मुझे मिला नहीं....!!!
          रश्मि अभय
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-----कोई दरिंचा खुला रह गया-----


एक अजीब सी काशमोंकश थी
अपने आप से जूझ रही थी मैं
कहाँ कमी रह गई थी

सबकुछ समान्य हीं तो चल रहा था

कितना विश्वास था हमें एक-दूसरे पर 

या फिर वो विश्वास एक तरफा था 

सिर्फ मेरी तरफ से...हाँ यही सच है
वो अक्सर घंटो मोबाइल पर बातें करते 

मैं यही समझती कि कोई बिजनेस मैटर है

इसलिए कभी ये ध्यान हीं नहीं गया 

कि जो बातें वो कभी मेरे सामने हीं
डील करते थे, 

अब वो अलग जाकर करते हैं 

ऐसी कौन सी डीलिंग थी जो 

ऑफिस के बाद भी घर तक पहुँच चुकी थी....

 जब तक समझ आया बहुत देर हो चुकी थी
शायद कहीं कोई दरिंचा खुला रह गया था....!!!