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Thursday, November 20, 2014

ऐ ज़िंदगी....

ज़िंदगी.....कल देखा तुझको...
फिर से...एक बार बहुत करीब से....
वो मासूम सा बच्चा....
जो हाथों में गुब्बारा लिए....
उछल रहा था खुशी से....
तब देखा था मैंने उसकी आँखों में,
तुम्हें खिलखिला कर हँसते हुए....
ऐ ज़िंदगी फिर देखा तुझे करीब से....
देखा था उस औरत की आँखों में,
श्रद्धा बनकर झिलमिलाते हुए....
जो देख रही थी एकटक....
जलते हुए दीये की लौ को,
सच बताना...वो लड़का जो एयरगन से
शूट कर रहा था गुब्बारों को....
पास खड़े उसके उसके पापा के होंठों पर,
जो मुस्कान खिल उठी थी....
वो तुम हीं ना थी....???
ऐ ज़िंदगी फिर देखा तुझको करीब से....
आज सुबह सवेरे देखा तुझे....
बेटे के चेहरे पर सूकुन बनकर बिखरे हुए,
फिर देखा तुझे वारिश की बूंदों में....
भींगते और मचलते हुए....
'ऐ ज़िंदगी' देखा तुझे आज आईने में....
अपने सिंदूर की रेखाओं में....
दुआ बनकर उभरते हुए.....!!!

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