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Tuesday, January 31, 2017

शिकस्त

तमाम उम्र ज़िंदगी मुझे तलाशती रही
और मैं ज़िंदगी से दूर दूर भागती रही।
कुछ इस कदर छला था हवाओं नें मुझे,
मैं आंधियों में भी एक दिया जलाती रही।
ना डर तूफान का, कुछ ऐसा जुनून था,
मैं कश्तीयों को समंदर में उतारती रही।
मरेगा क्या अब ये जालिम ज़माना मुझे,
'रश्मि' जान को हथेलियों पर सजाती रही।
था शौक कि दे वो, शिकस्त हर मोड़ पर।
और मैं अपनी जीत का पताका फहराती रही।

तेज़ रफ़्तार है ज़िन्दगी

बहुत तेज़ रफ़्तार है ज़िन्दगी की यारों
कई अपने राह में हीं छूट जाते हैं...
किसे फुर्सत की मुड़ के देखे ले...
मंजिल की चाह में अकेले चले जाते हैं
खुदगर्ज़ से हो गए हैं रिश्ते सभी के...
चेहरों पे कई चेहरे मिल जाते हैं...
गर भरी हो जेब तो बेगाने भी अपने हैं
वरना अपने भी कहाँ गुरबत में अपनाते हैं...
देखा है 'रश्मि' दुनियाँ को रंग बदलते...
जो दिल में बसे थे वही ठोकर लगाते हैं।।


Sunday, January 29, 2017

गुज़रा साल


गुज़रा साल कुछ ऐसे आया
जैसे सोच की कड़ी
बीच से टूट गई हो
जैसे समझने की शक्ति
खत्म होती जा रही हो
एक चुभन सी हो गई हो
आस्था की आँखों में
नींद के हाथों से कोई खूबसूरत
सपना टूट गया हो....
गुज़रा साल कुछ ऐसे हीं आया

जैसे दिल के किसी कोने में
कोई नश्तर चुभ गया हो
जैसे विश्वास के पन्नो पर
स्याही बिखर गई हो
जैसे समय के होठों से
साँसे निकल गई हो
और मेरी चीख होठों से हीं नहीं
आँखों से भी निकली हो
गुज़रा साल कुछ ऐसा हीं आया

जैसे मेरे बचपन की सहेली ने
भीड़ में मुझे अकेला छोड़ दिया हो
जैसे घर के संस्कारों की कड़ी
अचानक हीं टूट गई हो
इतिहास के नगीनों से
कोई अनमोल नगीना खो गया हो
और शमशान की जमीं भी
दर्द से फट पड़ी हो....
हाँ...गुज़रा साल कुछ ऐसा हीं आया।।