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Wednesday, March 6, 2013

इक्तेफाक ......


अजीब इक्तेफाक है
वो हर मोड़ पर मुझे मिल जाता है
वो एक शख्स...
जो मुझसे दूर जाने का
दावा किया करता है...
अभी अभी एक अजनबी ने
इतला की है
वो बीमार है...बहुत बीमार
मिलने की ख़्वाहिश है
वो एक शख्स
जो मुझसे ना मिलने की
दुआएं मांगता था
सोच रही हूँ मैं
कैसी विडम्बना है ये ज़िंदगी की
वो एक शख्स जो कभी
मेरी दुनियाँ हुआ करता था
जो जीवन के कठिन राहों में
मुझे छोड़ कर आगे बढ़ गया
आज पीछे लौटना चाहता है
तो क्या जड़ से उखड़ जाने के बाद भी
दिल में आज कहीं कुछ रह गया है
मगर इस रिश्ते को सींचने के लिए
वो विश्वास कहाँ से लाऊँ
जो खंडित हो गया है
वो एक शख्स
जो मेरी ज़िंदगी बन गया था....!!!
        'रश्मि अभय'


तेरी महफ़िल में....


तेरी महफिल में आकार प्रीतम दिल मेरा बेज़ार होता है...!
खुशी पाने की मंज़िल पे ही गम सौ बार होता है...!!
तड़पते हैं बहारों में यही किस्मत में है ‘’रश्मि’’ मेरी...!
मेरी नाकाम उलफत पर रुसवा मेरा प्यार होता है...!!
संभाल कर पाओं रखना ऐ ‘’प्रीतम’’ मेरी उलफत में...!
आशिकी की गली में राह काँटेदार होता है...!!
तलाश-ऐ-प्यार लेकर हम चल पड़े उनकी महफिल में...!
बड़ी मुश्किल से कभी दिलबर का दिलदार होता है.....!
.

तुम नहीं आए....




तुम नहीं आए...
पौ फटे से लेकर
अब तक
तुम्हारे इंतज़ार में
इंद्रधनुषी शृंगार किए
मैं हर गुजरते
वक़्त के साथ
पल पल जलते हुए
अब बुझने को हूँ...
मगर तुम नहीं आए...
कुछ हीं देर में
शाम ढल जाएगी
विरह की वेदना को
दिल में दबाये
सिसकती रहूँगी रात भर
बरसते रहेंगे ये नैन मेरे
ओस कणो के रूप में
ये जमीं ,फूल पत्ते
सभी महसूस करेंगे
मेरी पीड़ा को...
मगर तुम...
कभी समझ नहीं पाये...
इसलिए...तुम नहीं आए....!!!!

'रश्मि अभय'