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Sunday, February 5, 2017

करवा चौथ

कल फिर
करवा चौथ है...
पिछले साल का ज़ख्म,
अभी भरा नहीं,रिस रहा है धीरे धीरे,
कैसे चल दिये थे तुम,मुझे छोड़ कर...
मेहँदी लगे हाथों से मैं तुम्हें,रोकती रह गई,
किस निष्ठुरता से झटक दिया था तुमने मेरे हाथों को,
पल भर में सबकुछ बिखर गया था...
सारे रिश्ते...और टूट गया था बहुत कुछ,
मन के अंदर बिना किसी आवाज़ के...
भींगी पलकों से एकटक देखती रही मैं,
उस चाँद को,ढूंढती रही तुम्हें उसके अक्स में...
मगर तुम कहीं नज़र नहीं आए,
टूटे तारों को जोड़ने की कशमोकश में...
जब भी एक सिरा पकड़ा..दूसरा हाथ से फिसल गया,
सच तो ये है कि जोड़ना तो मैंने चाहा था...
तुम्हारी तरफ से कभी कोई सिरा जुड़ा हीं नहीं,
आज फिर तुम्हारे आने का संदेशा आया है...
कितनी खुश हूँ मैं ये सोचे बगैर कि,
पूरे साल तुम कहाँ रहे...
मैंने हाथों में फिर तेरी याद कि मेहँदी लगा रखी है,
जबकि मालूम है मुझे भी हक़ीक़तें तुम्हारी...
क्या सचमुच इतना बड़ा दिल है,
जो भी हो फर्क तो है तुम्हारे मेरे प्यार में...
तुमने कभी जोड़ना नहीं सीखा...
और मैंने कभी तोड़ना नहीं जाना।।

4 comments:

  1. Niswani ehsaasaat ki tarjumani .....
    Eik behad dil ko chhune waali nazm ..... aaaaaah aur waaaaah
    Buhat khoob Rashmi jee
    Allah kare zore Qalam aur ziyadah

    ReplyDelete
  2. Niswani ehsaasaat ki tarjumani .....
    Eik behad dil ko chhune waali nazm ..... aaaaaah aur waaaaah
    Buhat khoob Rashmi jee
    Allah kare zore Qalam aur ziyadah

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