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Sunday, February 5, 2017

इंतहाँ

बुझ के सुलगता रहा फिर
जल के भड़कता रहा...
कहीं भीतर हीं भीतर
कोई कोना....
रातों दिन दहकता रहा
बात जब भी आई
चाहत के इंतहाँ की
टीस बन कर मेरे दिल में
हर घडी धड़कता रहा.... !!

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