अक्सर खौफ सा होता है मुझे
जब देखती हूँ सूर्यास्त को...
बालकनी में खड़े होकर
धीरे धीरे नीचे झुकते सूरज को
देखती हूँ..और महसूस करती हूँ
अपने वजूद को खोने का...
ये खौफ उम्र के साथ बढ्ने लगा है
जब देखती हूँ सूर्यास्त को...
बालकनी में खड़े होकर
धीरे धीरे नीचे झुकते सूरज को
देखती हूँ..और महसूस करती हूँ
अपने वजूद को खोने का...
ये खौफ उम्र के साथ बढ्ने लगा है
सूरज के उगने और डूबने का
सिलसिला चलता रहेगा...
और उसके साथ हीं फैलती रहेंगी
असंख्य रश्मियां..मगर कभी ऐसा भी हो
कि ये 'रश्मि' कहीं सदा के लिये खो जाए
और उसका वजूद किन्हीं अँधेरों में
मिल जाए...पर मेरे दोस्तों
एक 'रश्मि' के मिट जाने से
जहां में अंधेरा नहीं होता...
प्रकृति अपनी नियति के साथ
चलती रही है...चलती रहेगी...!!!
awsm
ReplyDeletewww.radha.ml
Thanks😊
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