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Sunday, December 30, 2012

विश्वास

सुनो ‘देव’ मैंने कभी तुमसे कुछ नहीं छुपाया
क्यूंकि मैं ने यही जाना है कि
रिश्तों कि बुनियाद विश्वास पर
खड़ी होती है...
मैंने तुम्हें टूटकर चाहा
मगर तब तुम्हें मेरी चाहत का
कोई एहसास नहीं रहा
सुनो मैं जानती हूँ कि आज तुम
फिर लौटना चाहते हो...वो भी क्यूँ
क्यूंकि जिसके लिए तुमने मुझे छोड़ा था
वो आज तुम्हें छोड़ गई
आज मैं भी एक सच बयान करती हूँ
और वो ये कि अब मैं तुमसे प्यार नही करती
और ना हीं मेरे अंदर कोई सम्मान है तुम्हारे लिए
इसलिए नहीं कि मेरी ज़िंदगी में कोई और है
इसलिए कि मैं कोई वस्तु नहीं
एक इंसान हूँ...तुम्हारी पत्नी
तुम्हारी वो अर्द्धांगनी जिसने तुम्हारी खुशी के लिए
तुम्हारी वेवफ़ाई का जहर भी पिया
मगर कभी किसी से अपना दर्द बयान नहीं किया
भिंगी पलकें मुसकुराते होंठ लेकर
अपने कर्तव्यों का निर्वाह करती रही
मगर तुमने...???
तुमने मुझे कभी पत्नी का सम्मान नहीं दिया
‘देव’ तुमने जितना हीं मुझे तोड़ा
मैं मजबूत होती गई....
जाओ ‘देव’ किसी और की तलाश करो
मेरे दिल के और इस घर के दरवाजे
ना जाने कब के तुम्हारे लिए बंद हो चुके हैं....!!!

'देव तुम से तुम तक
'
'रश्मि अभय'

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