रिश्ते चाहे खून के हो या आपके जज़्बात का....छलते सभी हैं। और सबकुछ समझते हुए भी हम खामोश रहते हैं...कभी रिश्ता किसी बात से बिखर ना जाए ये सोचकर तो कभी अपनी हीं भावनाओं से मजबूर होकर।सच में ज़िंदगी एक व्यवसाय बन गई है...तेरा-मेरा का भाव सबसे प्रबल हो चुका है....'हम' ना जाने कब टूट कर 'मैं' और 'तुम' में बिखर गया है।
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