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Friday, July 19, 2013

-----रेनकोट-----

तुम्हें याद है....
अक्सर बारिश के दिनों में
तुम अपना रेनकोट नहीं लाते थे
साझा बारिशों का वादा जो था...
तुम्हें सर्दी जल्दी लगती है
इसलिए मैं तुम्हें
अपना रेनकोट दे देती
और खुद भींगे दुपट्टे में
अपने आप को लपेटे घर आती
बालों से टप टप गिरती पानी की बूंदे
ज़मीं पर नहीं,मेरे दिल पर गिरती
बहुत दिनों बाद इस बार
हमदोनों बारिश में साझा भींगे
बिना रेनकोट के....
तन के साथ मन भी
कहीं भींग रहा था
मैं तो घर आ गई मगर मन....???
मन वही कहीं...
तुमसे लिपट कर रह गया
आज भी जब बारिश होती है
मैं बालकनी में खड़ी हो
अपनी अंजुरियों में पानी भर
उछाल देती है...यूँ जैसे मैंने तुम्हें
भींगों दिया हो...और मेरा अन्तर्मन
उन लम्हों को याद कर भींग जाता है...
क्या तुम्हें भी वो पल याद हैं...
क्या अब भी तुम
बिना रेनकोट के निकलते हो....

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