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Friday, June 21, 2013

हम तुम्हारे मुंतज़िर हैं.....



उफ़्फ़ क्या मौसम है
बारिश की बूंदे
पेड़ो की हरी शाख पर 
जब छन छन गिरती है
तो यूँ लगता है कि
तुम्हारी हंसी
मेरे कानों में गूंज रही हो
अपनी भिंगी लटों को
झटकते हुए
मैं एक बार फिर
तुम्हारे तसव्वुर में
हौले से मुसकुराती हूँ....
हवा जब मेरी ओढनी से
अठखेलियाँ करता है
तो ओढनी का हल्का
गुलाबी रंग मेरे चेहरे पर
बिखर जाता है...
मेरे दर से तुम्हारे दरवाजे तक
जो एक रास्ता जाता है
वो खुशबू से भर जाता है...
जैसे मेरी राह ताक रहा हो
रश्मि अब आ भी जाओ
हम तुम्हारे मुंतज़िर हैं.....!!!!

रश्मि अभय (१९/६/२०१३,८:१५ पी एम)

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