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Wednesday, March 6, 2013

तुम नहीं आए....




तुम नहीं आए...
पौ फटे से लेकर
अब तक
तुम्हारे इंतज़ार में
इंद्रधनुषी शृंगार किए
मैं हर गुजरते
वक़्त के साथ
पल पल जलते हुए
अब बुझने को हूँ...
मगर तुम नहीं आए...
कुछ हीं देर में
शाम ढल जाएगी
विरह की वेदना को
दिल में दबाये
सिसकती रहूँगी रात भर
बरसते रहेंगे ये नैन मेरे
ओस कणो के रूप में
ये जमीं ,फूल पत्ते
सभी महसूस करेंगे
मेरी पीड़ा को...
मगर तुम...
कभी समझ नहीं पाये...
इसलिए...तुम नहीं आए....!!!!

'रश्मि अभय'

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