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Friday, August 10, 2012

आँचल


और भी गम हैं ज़माने में रूलाने के लिए,
एक तुम हीं नहीं तन्हा मुझको सताने के लिए,
लग जाए अगर आग तो क्या कीजिये,
होती है एक चिंगारी हीं बहुत घर को जलाने के लिए,
इस दुनियाँ में बेवफ़ाई का देखा है अंजाम यही,
 रहती नहीं वफा की हस्ती, दर्द-ए-जफ़ा उठाने के लिए,
हँस रहा है वो आज अपनी हालत पे यूं,
क्या मिला नही है हक़ उसको महबूब का मातम मनाने के लिए,
अपने दिल में दबे शोलों से क्यूँ डरती हो ‘रश्मि’…??
अपने
आँचल पर लगे दाग से क्यूँ नाराज़ हो तुम...??
है एक बूंद हीं तेरे अशकों का,दामन पर लगे दाग को मिटाने के लिए.....!!!

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