कल तुम्हारा दामन
हांथों में आते आते
छूट गया...
देखा था मैंने तुम्हारी
आँखों की नमी को भी
जो अपलक निहार रही थी
मेरी आँखों को...
कुछ ढूंढ रही थी मुझमे
पर शायद नाकामयाब रही थी
बस चंद कदमों का हीं
फासला था...
मगर कितना लम्बा था
पलट कर चल दी थी मैं
तुम्हारी खोखली सी मुस्कुराहट को
अपने आप में समेट कर...
क्यूंकि मुझमें वो ताब नहीं थी
जो तुम्हारी मजबूर निगाहों का
सामना कर सके...
सुनो मैंने तुम्हें बहुत याद किया....!!!
हांथों में आते आते
छूट गया...
देखा था मैंने तुम्हारी
आँखों की नमी को भी
जो अपलक निहार रही थी
मेरी आँखों को...
कुछ ढूंढ रही थी मुझमे
पर शायद नाकामयाब रही थी
बस चंद कदमों का हीं
फासला था...
मगर कितना लम्बा था
पलट कर चल दी थी मैं
तुम्हारी खोखली सी मुस्कुराहट को
अपने आप में समेट कर...
क्यूंकि मुझमें वो ताब नहीं थी
जो तुम्हारी मजबूर निगाहों का
सामना कर सके...
सुनो मैंने तुम्हें बहुत याद किया....!!!
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