कल तमाम रात
एक अजीब सी आहट
मेरे आस पास रही
जानती हूँ वो तुम नहीं थे
फिर वो कौन था,जो
मेरे ख़यालों से गुज़रता रहा
कोई अक्स जहन में नहीं आता
बस एक सरगोशी सी महसूस होती है
जैसे किसी ने मुझे पुकारा हो ‘रश्मि’
बस एक एहसास अनूठे स्पर्श का
जैसे कोई मुझे छू कर गुज़र गया हो
सिमट जाती हूँ मैं अपने आप मैं
उठकर बैठ जाती हूँ बिस्तर पर
किसी सलवट का निशान तक नहीं
सिकोड़ लेती हूँ अपने पैरों को और
अँधेरों में उस साये को
ढूँढने की कोशिश करती हूँ
मगर कुछ नज़र नहीं आता
क्या हो गया है मुझे....
शायद मेरा हीं साया होगा
जो मुझे छू कर गुज़र गया
सच कहते हो तुम मुझे ‘बौराई’
‘रश्मि अभय’ (४ फरवरी २०१३,९:२० पी एम)
एक अजीब सी आहट
मेरे आस पास रही
जानती हूँ वो तुम नहीं थे
फिर वो कौन था,जो
मेरे ख़यालों से गुज़रता रहा
कोई अक्स जहन में नहीं आता
बस एक सरगोशी सी महसूस होती है
जैसे किसी ने मुझे पुकारा हो ‘रश्मि’
बस एक एहसास अनूठे स्पर्श का
जैसे कोई मुझे छू कर गुज़र गया हो
सिमट जाती हूँ मैं अपने आप मैं
उठकर बैठ जाती हूँ बिस्तर पर
किसी सलवट का निशान तक नहीं
सिकोड़ लेती हूँ अपने पैरों को और
अँधेरों में उस साये को
ढूँढने की कोशिश करती हूँ
मगर कुछ नज़र नहीं आता
क्या हो गया है मुझे....
शायद मेरा हीं साया होगा
जो मुझे छू कर गुज़र गया
सच कहते हो तुम मुझे ‘बौराई’
‘रश्मि अभय’ (४ फरवरी २०१३,९:२० पी एम)
मैंने पूरी नज़्म को नीचे से ऊपर पढ़ा तब भी इस नज़्म में एक ख़ूबसूरत लय है बहुत ख़ूब रश्मि जी !
ReplyDeleteशुक्रिया और स्वागत है आपका चिन्मय....
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