सुनो,मैं जानती हूँ
तुम्हारे अथाह प्रेम को,
मैं इसे
किसी परिधि में नहीं बांध सकती,ये भी जानती हूँ कि मृत्यु सत्य है,
और जीवन नश्वर...
शायद यही सोच मुझे विचलित करती है,
सुनो,मुझे भी तुमसे अथाह प्रेम है,
फर्क सिर्फ इतना है कि तुम प्रेम को,
शब्दों का आवरण पहना देते हो,
और मेरा प्रेम मूक है...
तुम्हारे बिना कभी जीवन कि इच्छा नहीं हुई,
मगर आज ना जाने क्यूँ ये कहना चाहती हूँ,
कि अगर जीवन का अंत हीं शाश्वत है,
तो मुझसे पहले तुम चले जाओ...
क्यूँ देख रहे हो मुझे यूं बिस्मित होकर,
सुनो,मैं तो औरत हूँ,
जन्म से ही सुख-दुख सहने कि क्षमता है मुझमे,
जी लूँगी ये जीवन भी मैं तुम्हारे बिना,
एक जलावतन कि तरह...
मगर तुम कैसे जी पाओगे ??
कौन समझ पायेगा तुम्हारी खामोश जरूरतों को,
नहीं...नहीं तुम नहीं सह पाओगे,
इसलिए तुम चले जाना,
और जीने देना मुझे इस मृत्युप्राय जीवन को...!!!
‘रश्मि अभय’
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