‘देव’ पता नहीं...
ऐसा क्या कहा था तुमने
जो मैं खिलखिला के हंस पड़ी
जैसे एक गहन अँधेरों के बाद
सूर्य किरण फूट पड़ी हों...
बिस्मित हो तुम मुझे देखते रहे
शायद तुमने कभी मुझे यूं
हँसते हुए नहीं देखा नहीं था
मुझे खुद भी नहीं पता
कि पिछली बार मैं कब हंसी थी
तुम्हें पता था अभी मेरी आँखों में
अश्क उमड़ आयेंगे...
मैं तुम्हारी तरफ से मुड़ गई
ताकि तुम मेरी आँखों को ना देख सको
मगर तुम्हारी आँखें
हाँ...वो बचपन से मुझे
पढ़ती हीं तो आई थी...
वो कौन से एहसास थे
पता नहीं जिसने एक पल में
तुम्हें झिंझोर दिया...
मेरी बाहों को पकड़ कर
कस कर अपनी बाहों में
मुझे जकड़ लिया तुमने...
‘देव’ शायद यही वो पल थे
जिसमें मेरे दिल पर
जमी हुई वर्फ...
तुम्हारे प्यार कि ऊष्मा से
धीरे धीरे पिघलने लगी...
हाँ यही वो पल था जिसमें
मैं फफक कर रो उठी...
मेरे हर आँसू के साथ
तुम्हारी बाहों का बंधन कसता गया
ये वही एहसास थे...
जो दिल में रहते हुए भी
होठों तक नहीं आ पाये
हाँ...ये ‘प्यार’ हीं तो है...!!!
‘देव तुम से तुम तक’…..’रश्मि अभय’ (१७ फरवरी २०१३, १०:३० ए.एम.)
तुम्हारे प्यार कि ऊष्मा से
ReplyDeleteधीरे धीरे पिघलने लगी...
हाँ यही वो पल था जिसमें
मैं फफक कर रो उठी...
मेरे हर आँसू के साथ
तुम्हारी बाहों का बंधन कसता गया-------bhawuk abhivyakti badhai