-----कोई दरिंचा खुला रह गया-----
एक अजीब सी काशमोंकश थी
अपने आप से जूझ रही थी मैं
कहाँ कमी रह गई थी
सबकुछ समान्य हीं तो चल रहा था
कितना विश्वास था हमें एक-दूसरे पर
या फिर वो विश्वास एक तरफा था
सिर्फ मेरी तरफ से...हाँ यही सच है
वो अक्सर घंटो मोबाइल पर बातें करते
मैं यही समझती कि कोई बिजनेस मैटर है
इसलिए कभी ये ध्यान हीं नहीं गया
कि जो बातें वो कभी मेरे सामने हीं
डील करते थे,
अब वो अलग जाकर करते हैं
ऐसी कौन सी डीलिंग थी जो
ऑफिस के बाद भी घर तक पहुँच चुकी थी....
जब तक समझ आया बहुत देर हो चुकी थी
शायद कहीं कोई दरिंचा खुला रह गया था....!!!
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