फिर उसकी यादें गुजरी हैं
मेरे शहर से बादल की तरह
फूल हीं फूल बिखर गए राहों में
मेरे आँचल की तरह
सुना रहा है बीते मौसम की........
कहानी वो मुझसे.....
जिस्म भींगे हुए हैं बारिश में अब तक
गीली लकड़ी की तरह....
कभी सुना नहीं मैंने
ऊंची आवाज़ में उसे कुछ कहते हुए.....
नाराजगियों में भी उसका लहजा रहा
मोम की तरह......
मिल के उस शख्स से
मैं चाहे जो कह जाऊँ......
खामोशियों में बोल उठती हैं
उसकी निगाहें घुँघरू की तरह
जब तक वो मेरे साथ है
ज़िंदगी मुसकुराती है....
फैलता जाता है फिर आँखों में
मेरे काजल की तरह....
अब किसी तौर से
पीछे लौटने की सूरत हीं नहीं....
रास्ते सभी बंद हैं
दिल के दरवाजे की तरह......
जिस्म के अंदर बने
मंदिर में सुबह-ओ-शाम
जल उठता है रोज
वो दीये की तरह......!!!!!
मेरे शहर से बादल की तरह
फूल हीं फूल बिखर गए राहों में
मेरे आँचल की तरह
सुना रहा है बीते मौसम की........
कहानी वो मुझसे.....
जिस्म भींगे हुए हैं बारिश में अब तक
गीली लकड़ी की तरह....
कभी सुना नहीं मैंने
ऊंची आवाज़ में उसे कुछ कहते हुए.....
नाराजगियों में भी उसका लहजा रहा
मोम की तरह......
मिल के उस शख्स से
मैं चाहे जो कह जाऊँ......
खामोशियों में बोल उठती हैं
उसकी निगाहें घुँघरू की तरह
जब तक वो मेरे साथ है
ज़िंदगी मुसकुराती है....
फैलता जाता है फिर आँखों में
मेरे काजल की तरह....
अब किसी तौर से
पीछे लौटने की सूरत हीं नहीं....
रास्ते सभी बंद हैं
दिल के दरवाजे की तरह......
जिस्म के अंदर बने
मंदिर में सुबह-ओ-शाम
जल उठता है रोज
वो दीये की तरह......!!!!!
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