गुजरे हुए मौसम की खोई हुई ख़ुशबू
यूँ मेरे रगों में उतर आई...
कि जैसे कोई भूला हुआ रूपहला ख्वाब
एक हकीकत बनकर सामने आ जाए
जैसे सहरा की जमीं पर पहली बारिश...
जैसे कोई बिछड़ा हुआ शख्स
इबादत बन कर जहां पर छा जाये
जैसे किसी ने बहुत हल्के से
दिल के दरवाज़े पर दस्तक दी हो
और बड़ी नरमी के साथ....
यादों के बंद दरीचों को खोला हो
कुछ इस तरह कि हर दरीचे की
अलग-अलग ख़ुशबू से मेरे घर का आँगन
रंग-दर-रंग छलक जाए....!!!!
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