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Friday, July 19, 2013

काव्य


1.ज़िंदगी की एक नई शुरुआत
एक नई कशमोंकश
अतीत से झाँकती दर्द की
परछाइयाँ....और
आने वाले वक़्त के सपने...
उन सपनों को पूरा करने में
एक संघर्षरत जीवन....
भागता दौड़ता इंसान
बहुत कुछ पाने की चाह
सब कुछ खोटा हुआ इंसान
खत्म होती भावनाएँ
रिश्तों का बदलता स्वरूप
ये ज़िंदगी किस मोड़ पर 
लेकर आई है....
चलो ज़िंदगी के कुछ पन्नों को
मोड़ कर रखते हैं
गर कभी वक़्त मिला
ज़िंदगी की इस किताब की
मुड़े हुए उस सफ़े को खोलेंगे
और फिर महसूस करेंगे
बहुत कुछ पाने की चाह में
सब कुछ खो दिया हमने....!!!
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2.कल तुम्हारा दामन
हांथों में आते आते
छूट गया...
देखा था मैंने तुम्हारी
आँखों की नमी को भी
जो अपलक निहार रही थी
मेरी आँखों को...
कुछ ढूंढ रही थी मुझमे
पर शायद नाकामयाब रही थी
बस चंद कदमों का हीं
फासला था...
मगर कितना लम्बा था
पलट कर चल दी थी मैं
तुम्हारी खोखली सी मुस्कुराहट को
अपने आप में समेट कर... 
क्यूंकि मुझमें वो ताब नहीं थी
जो तुम्हारी मजबूर निगाहों का
सामना कर सके...
सुनो मैंने तुम्हें बहुत याद किया....!!!

3.अचानक चलते चलते ठहर गई हूँ
कितने यकीन के साथ घर की
दहलीज़ को पार किया था मैंने
सबकी नाराजगी को नज़रअंदाज़ करके
सिर्फ और सिर्फ तुम पर विश्वास किया
क्षण भर में भूल गई मैं माँ के आँसू
बाबा की खामोशी और भाई की दलीलों को
जन्म से लेकर अब तक के सारे रिश्ते
सिर्फ खोखले नज़र आए सिवा तुम्हारे...
दीवानगी में खुद को रुसवा कर बैठी
सुनो जब तुम मुझे अपने घर का पता
बता रहे थे,तभी मुझे समझ जाना था
कि तुम्हारे अंदर सच्चाई नहीं है
साथ निभाना था तो घर साथ लेकर चलते
अपनी जिंदगी में मेरी पहचान बताते
तुमने तो सिर्फ ये कहा था कि रश्मि
जब तुम मेरे शहर पहुंचोगी तो एक चौराहा मिलेगा
वहाँ से मुड़ जाना...यहाँ तो बहुत सारे चौराहे हैं
मुझे किस चौराहे से किस तरफ मुड़ना होगा
ना तुमने बताया...ना मैंने पूछा
सच बौरा गई थी मैं जो तुम्हारे कलुषित हृदय को
समझ नहीं पाई...आज इस चौराहे पर खड़ी
मुझे सिर्फ एक हीं रास्ता दिख रहा है
जो मेरे बाबा के घर तक जाता है...हाँ
मेरे माँ बाबा हीं ऐसे हैं जो मुझसे
बिना कोई सवाल किए हृदय से लगा लेंगे
क्यूंकि मैं उनके जिगर का वो टुकड़ा हूँ
जिसे तुमने पत्थर समझ कर चौराहे पर फेंक दिया

4.जब भी मिलते हो
परेशान से दिखते हो
सुनो...
अपनी कुछ परेशानियाँ
मुझे दे दो...
बहुत दिनों से 
तुम्हारे कुछ एहसान 
मुझ पर लदे हैं
शायद इस तरह
मैं कुछ हल्की हो जाऊँ
मगर तुम तो 
सौदागर हो...
जानती हूँ इसमें भी
तुम्हें मेरा कुछ
फायदा नज़र आता होगा
चलो अपने गमों के बदले
मेरी खुशियाँ ले जाओ
इन्हें भी तो तुमने हीं
दिया था...
तब से अमानत समझकर
संभाल रखा है...
क्या पता मेरे बाद 
कोई और संभाल पाएगा या नहीं
तुम्हें हिसाब-किताब तो
बहुत आता है...
जानती हूँ तुम संभाल लोगे
क्यूंकि घाटे के सौदागर तो
तुम कभी रहे हीं नहीं....!!!
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5.तुम्हीं बताओ
तुम्हारी ज़िंदगी में
मैं कहाँ हूँ...
सुबह की ताजगी में
या ढलती शाम में
बारिश की पहली फुहार में
या चाँद की चाँदनी में
या कि फिर तपती धूप में
या रात के गहन अँधेरों में
तुम्हारी गहरी चिंतन में
या सरसराती सोच में

तुम्हीं बताओ
तुम्हारी ज़िंदगी में
मैं कहाँ हूँ

ज़िंदगी के हुजूम से घबड़ा कर
साहिल के किसी किनारे पर
तुम्हारी उँगलियों में दबी
सिगरेट के धुएँ के छल्लों में
या बेइरादा उभर आई किसी सोच में
इक दर्द मोहब्बत टूटने का
या दूसरा आगाज होने का
किसी खुश आदाब लम्हों में

तुम्हीं बताओ
तुम्हारी ज़िंदगी में
मैं कहाँ हूँ....
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6.गुजरे हुए मौसम के किसी पल में
तुमने कुछ इस तरह पुकारा था मुझे
जैसे कोई बहुत मीठा सुर...
मेरी रूह का कोई सिरा छू जाए
जैसे शबनम का कोई अकेला मोती
मेरी हिना लगी हथेलियों पर टपक जाए
जैसे कोई आवारा हवा मोहब्बत की सूरत में
रात की रानी से हौले से कोई बात कह जाए
जैसे मेरी बचपन की किसी सहेली ने मुझे
तेरा नाम लेकर शोख लहजे में कोई बात कही हो
शर्म से पलकें बोझिल हो उठी...
एक ऐसा सुरूर दिलों-दिमाग पर छ गया
कि खुद-बख़ुद मेरी आँखें बंद हुई जाती हैं
देर तक ख्वाब का आलम हीं रहा...
तेरी आवाज़ कि सरसराहट में बंधी मेरी रूह
अनदेखे बंधनों में सफर करती रही...
ना जाने कितनी बार...कभी सिमटी...
कभी बिखरी और कभी अपने होश गवा बैठी
तुम्हारे साथ ख्वाबों में...जमीं से आसमां तक घूमती रही
ख्वाब था जो टूटने का नाम नहीं लेता
मगर ख्वाब तो ख्वाब हीं होते हैं...
आज किसी ने बड़े दर्द के साथ कहा....
बावरीतुम किस दुनियाँ में गुम हो...???
तुम्हारा महबूब आज उसी लहजे उसी अंदाज के साथ
किसी और का नाम ले रहा था....

7.छोटी सी वो लड़की
मैले कुचैले कपड़े पहने
अक्सर कूड़ों में कुछ
ढूँढता देखा....
गोरे गोरे चेहरे पर
झुके हुए बालों को
हटाने के क्रम में
काले काले धब्बे
यूं जैसे चाँद का दाग
और गहरा हो उठा हो
चेहरे पे एक ओज और
आँखों में आत्मसम्मान
वक़्त गुज़रता गया
बहुत दिनों गुज़र गए
उसे इधर देखा नहीं
अब तो और भी
प्यारी लगती होगी
बड़ी जो हो गई होगी
काश उस वक़्त
मुझे पता होता
कि किसी गरीब की
बेटी का बड़ा होना
कितना बड़ा अभिशाप है
हाँ सच हीं तो है
आज सुबह सवेरे हीं
ये खबर मिली कि
उस लड़की की माँ ने
उसका गला घोंट कर
खुद खुदखुशी कर ली
क्यूंकि एक इज्जतदार ने
उसकी बेटी की इज्जत
लेने की कोशिश की
8.तुम्हीं बताओ तुम्हें क्या भेंजू
पतझड़ के इस मौसम में
वो फूल कहाँ से लाऊं
जो तुम्हारे दामन को
खुशियों से भर दे
देखो न...मेरा आँगन खाली है मगर मेरे पास मेरी
नेक दुआओं का शबनम है
शबनम का हर एक कतरा
तुम्हारे दामन को थाम कर
ये दुआ करता है....
मेरे खुशबू.... जल्दी से अच्छे हो जाओ
बहार ना जाने कब से
तेरे नर्म होठों पर
हंसी का इंतज़ार कर रही है....!!!

9.सुनते आए थे अक्सर
साहिल के नजदीक
रेत से घर नही बनाया करते
कोई बेपरवाह मौज आएगी
और बुनियाद तक बहा ले जाएगी
फिर तू सारी उम्र
उसकी याद में आँसू बहाएगी
बेशक मैंने आँसू बहाये
मगर रेत से घर बनाने नहीं छोड़े
हर मौज मुझे ये बताती रही
ज़िंदगी संघर्ष है,हौसला मत छोड़ो.....!!!
10.ना जाने कैसी दुआ थी उन पाकीज़ा लम्हों में
वो एक ऐसा लम्हा जिस पर जां निसार था...
हाथ उठा कर जब उसने खुदा से मुझे मांगा
मेरे चेहरे पर ना कितने इंद्रधनुषी रंग बिखर गए
बहुत प्यार से मेरे चेहरे को अपने हाथों में लेकर
उसने मेरे माथे पर प्यार की एक चुंबन जड़ दी....!!!!

11.याद में मेरी नम हो गई होंगी पलकें उसकी....
'
कुछ पड़ गया आँखों में' कह के उसने टाला होगा....
और घबड़ा के जो किताबों को खोला होगा....
हर शब्द में मेरा हीं चेहरा नज़र आया होगा....
जब मिली होगी उसे मेरी रुखसती की खबर....
लिपट के दीवारों से वो बेजार हो रोया होगा....
छुपाने के लिए अपने दिल के ज़ख़्मों को....
यूँ हीं बेवजह किसी अजनबी को उसने रोका होगा....!!!

12.
आज की शब तो किसी तरह गुज़र जाएगी....
रात गहरी सही मगर चाँद चमकता है अभी
सिंदूर बन मेरे माथे पर तेरा प्यार दमकता है अभी
मेरी सांसें तेरी खुशबू से महकती हैं अभी
मेरे सीने में तेरा दिल धड़कता है अभी....
जीने के लिए अभी बहुत कुछ है मेरे पास....

तेरी आवाज़ का जादू है अभी मेरे लिए....
तेरी आँखों की रौशनी है अभी मेरे लिए....
तेरी बाहें,तेरा पहलू है अभी मेरे लिए....
ऐ मेरी ज़िंदगी...सबसे बढ़कर अभी तू है मेरे लिए...
जीने के लिए अभी बहुत कुछ है मेरे पास...
आज की शब तो किसी तरह गुज़र जाएगी...
13.एक दिन हद से गुज़र जाएंगे
देखो हम तुम्हें याद बहुत आएंगे
आज तुम्हें मेरी वफा का यकीन नहीं
कल हम अपनी जुबां से मुकर जाएंगे
क्यूँ करते हो खुद पर रश्क इतना
कहीं भी जाओगे हमें नहीं पाओगे
आज सरेआम मुझपर तोहमत लगा लो
कल मेरे नगमों को गुनगुनायेंगे
कोशिश कर लो हमें भूल जाने की
फिर ये वादा है हम याद बहुत आएंगे
14.एक अजीब सी हलचल थी
जैसे किसी ने आवाज़ दी हो
वो आवाज़ जैसे तुम्हारी हो
पूरी काया काँप उठी....

मासूम सी खुशी हाथ छुड़ाकर
चंचल हिरनी की तरह
उस दिशा में भागी
जिधर से आवाज़ आई थी....

इतना आसान नहीं था
तुम तक फासला तय करना
पहले मेरे संस्कार ने रोका
फिर लोक-लज्जा ने....

समाज का एक एक कांटा
तलवों को लहूलुहान करता रहा
मगर कदम थे कि
बढ़ते हीं गए....

तलवों से कांटे निकालती
लहू पोछती,पोर दबाती
मीलों-कोसों दूर लंगड़ाती
मासूम सी खुशी वहाँ आ पहुंची...

पाओं जैसे जमीं से चिपक गए हों
एक पाओं आगे जाता तो दूसरा पीछे
आवाज़ तो बिलकुल तुम्हारी थी
मगर नज़र बिल्कुल बेगानी...

कशमोंकश का एक तीखा काँटा
इस कदर एड़ी में चुभा
कि उसकी चुभन
पूरे शरीर ने महसूस किया...

पूरा बदन नीला पड़ गया
जैसे ज़हर सा फैल गया हो
खुद से हार कर मैं वहीं बैठ गई
और मेरी मासूम खुशी रो उठी....!!!
15.तुम नहीं आए...
पौ फटे से लेकर
अब तक
तुम्हारे इंतज़ार में
इंद्रधनुषी शृंगार किए
मैं हर गुजरते
वक़्त के साथ
पल पल जलते हुए
अब बुझने को हूँ...
मगर तुम नहीं आए...
कुछ हीं देर में
शाम ढल जाएगी
विरह की वेदना को
दिल में दबाये
सिसकती रहूँगी रात भर
बरसते रहेंगे ये नैन मेरे
ओस कणो के रूप में
ये जमीं ,फूल पत्ते
सभी महसूस करेंगे
मेरी पीड़ा को...
मगर तुम...
कभी समझ नहीं पाये...
इसलिए...तुम नहीं आए....!!!
16.जाते जाते
ये भी ना सोचा...
कि एक रिश्ता है
आज भी...
हमदोनों के बीच...
जो साँसे ले रहा है...
कभी उस रिश्ते की बुनियाद...
डाली थी हमने
अपनी मोहब्बत से...
और उस पर खड़ी की थी...
एक विश्वास की दीवार...
ना जाने कब
उस दीवार में...
दरारें आने लगी...
जिन्हे भरने की कोशिश में...
बहुत कुछ टूटने लगा था...
भीतर हीं भीतर...
एक घुटन सी होने लगी थी...
चलो अच्छा है...
बिछड़ जाते हैं...
सांस लेने देते हैं
अपने रिश्ते को...
मगर ये याद रखना
कि हमदोनों के बीच...
एक और भी रिश्ता है...
जो सांसे ले रहा है.....!!!
17.हर बार सब कुछ
अधूरा लगता है...
लगता है कि
वक़्त का कोई सिरा
छूट रहा है हाथों से...
समेटती हूँ जब भी
मैं बिखरे लम्हों को...
एक लम्हा छूट कर
नीचे गिर जाता है...
ठीक उसी तरह
जैसे कोई हसीन ख़्वाब
पलक खुलते हीं
टूट जाता है.....!!!
18.ओ माँ !!
सब कुछ तो दिया तूने
पर क्यों नहीं दी आँगन की
मुट्ठी भर मिट्टी ??
जिसमें बसी थी
बस खुशबू तेरी
जब जी चाहता
चुटकी भर चूल्हे में मिला...
बना लेती रसोई आपनी...
कि डाल आँगन में
रोप देती 'तुलसी' को
धरती पर बिखेर
खोद लेती एक कुआं...
बना कर इक दिया
कर लेती उजियारा...
अपने अंधेरे मन को
बाकि में सिन्दूर मिला कर
कर लेती सोलह शृंगार...
तब माँ...
जब-जब देखती मैं दर्पण...
पिया-घर ही नहीं...
पीहर भी दिखता
मेरे लिलार पर..
19.कितना सख्त इंतहाँ था
तुम्हें छोड़ कर आना
लिपट गई थी मैं
वहीं तुम्हारी रूह से कहीं
जो साथ आया था
वो मेरा ना था
तमाम बन्दिशें थी जमाने की
और ना जाने कितने सवालात थे
जिनका कोई जबाब नहीं था
मैं कहती भी तो क्या
कोई समझ पता
मेरे तुम्हारे रिश्ते को ??
20.मैं तो स्त्री थी,
बंधी हुई थी अपने बंधनों में
मगर हे आर्यपुत्र तुम तो पुरुष थे
तुम्हारी ऐसी कौन सी मजबूरियां थी
जो तुमने सारे वचनों को भूला दिया
अपने वचनों से बंधी।
मैंने कभी तुमसे कोई प्रश्न नहीं किया
चलती रही उन कंटक राहों पर
जिस पर तुम चलते रहे
मैं तो फिर भी तुम्हारे साथ थी
मगर सोचो उर्मिला के दर्द को
जिसने तुम्हारे प्रति...भातृ प्रेम को देखकर
लक्ष्मण को त्याग दिया....
हे रघुनंदन तुम उसकी विरह वेदना को क्या समझो
तुम तो पुरुष हो...
कैसे समझाऊँ तुम्हें हृदय की पीड़ा
जब मैं लंका से लौटी
तो तुमने ली मेरी अग्निपरीक्षा
वो मेरी पवित्रता पर आघात हीं तो था...
मगर तुम भी तो मुझसे दूर थे
फिर तुमने क्यूँ नहीं दी कोई परीक्षा ??
कहते हैं...रघुकुल रीत सदा चली आई
प्राण जाए पर वचन ना जाये’….
वचन तो तुमने भी लिए थे कठिन से कठिन
मार्ग पर साथ निभाने का....
मगर कितने कमजोर थे तुम
अग्निपरीक्षा लेने के बाद भी
एक धोबी के कहने पर
अपनी पत्नी को वनवास दे दिया
वो भी उस वक़्त जब उसके अंदर तुम्हारे
रघुकुल का अंश पल रहा था....
हे आर्य मैंने तुम्हारे कुल को
वंश तो दे दिया...
मगर मैं भूमि पुत्री सीता
पुनः भूमि में समा रही हूँ
इस श्राप के साथ कि
तुम मेरे नाम के बिना
सदा अधूरे रहोगे............
21.तुम्हें याद है....
अक्सर बारिश के दिनों में
तुम अपना रेनकोट नहीं लाते थे
साझा बारिशों का वादा जो था...
तुम्हें सर्दी जल्दी लगती है
इसलिए मैं तुम्हें
अपना रेनकोट दे देती
और खुद भींगे दुपट्टे में
अपने आप को लपेटे घर आती
बालों से टप टप गिरती पानी की बूंदे
ज़मीं पर नहीं,मेरे दिल पर गिरती
बहुत दिनों बाद इस बार
हमदोनों बारिश में साझा भींगे
बिना रेनकोट के....
तन के साथ मन भी
कहीं भींग रहा था
मैं तो घर आ गई मगर मन....???
मन वही कहीं...
तुमसे लिपट कर रह गया
आज भी जब बारिश होती है
मैं बालकनी में खड़ी हो
अपनी अंजुरियों में पानी भर
उछाल देती है...यूँ जैसे मैंने तुम्हें
भींगों दिया हो...और मेरा अन्तर्मन
उन लम्हों को याद कर भींग जाता है...
क्या तुम्हें भी वो पल याद हैं...
क्या अब भी तुम
बिना रेनकोट के निकलते हो....
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