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Saturday, February 16, 2013

प्यार की ऊष्मा....


देव पता नहीं...
ऐसा क्या कहा था तुमने
जो मैं खिलखिला के हंस पड़ी
जैसे एक गहन अँधेरों के बाद
सूर्य किरण फूट पड़ी हों...
बिस्मित हो तुम मुझे देखते रहे
शायद तुमने कभी मुझे यूं
हँसते हुए नहीं देखा नहीं था
मुझे खुद भी नहीं पता
कि पिछली बार मैं कब हंसी थी
तुम्हें पता था अभी मेरी आँखों में
अश्क उमड़ आयेंगे...
मैं तुम्हारी तरफ से मुड़ गई
ताकि तुम मेरी आँखों को ना देख सको
मगर तुम्हारी आँखें
हाँ...वो बचपन से मुझे
पढ़ती हीं तो आई थी...
वो कौन से एहसास थे
पता नहीं जिसने एक पल में  
तुम्हें झिंझोर दिया...
मेरी बाहों को पकड़ कर
कस कर अपनी बाहों में
मुझे जकड़ लिया तुमने...
देव शायद यही वो पल थे
जिसमें मेरे दिल पर
जमी हुई वर्फ...
तुम्हारे प्यार कि ऊष्मा से
धीरे धीरे पिघलने लगी...
हाँ यही वो पल था जिसमें
मैं फफक कर रो उठी...
मेरे हर आँसू के साथ
तुम्हारी बाहों का बंधन कसता गया
ये वही एहसास थे...
जो दिल में रहते हुए भी
होठों तक नहीं आ पाये
हाँ...ये प्यार हीं तो है...!!!
देव तुम से तुम तक’…..’रश्मि अभय (१७ फरवरी २०१३, १०:३० ए.एम.)


Wednesday, February 6, 2013

बेटी

किस किस नाम से
नहीं पुकारा तुमने 
गिनने पर आऊँ 
तो गिन भी ना पाऊँ
सच तो ये है 
कि इनके बीच
मैं अपना वो नाम 
भूल गई,जो कभी मेरी 
पहचान हुआ करती थी
जिसे मेरे माँ-बाबा ने
उतने हीं प्यार से रखा था
जिस लाड़ से तुमने
अपनी बेटी का नाम रखा है
मगर आज किसी ने
तुम्हारी बेटी को कुछ कह दिया
तो किस तरह तुमने आसमान को
सर पर उठा लिया
पल भर में भूल गए मेरे दर्द को
मेरी पहचान को
कि मैं भी किसी की बेटी हूँ
मेरे माँ-बाबा ने भी उसी लाड़ से
मेरी परवरिश की होगी
और बहुत अरमान से
तुम्हें मेरे जीवनसाथी के रूप में
चुना होगा...उन्हें क्या पता था
कि तुम अपने शब्दों के बाण से
उनकी बेटी के वजूद को
चिथड़े चिथड़े कर दोगे...!!!

‘रश्मि अभय’ (६ फरवरी २०१३,८:१० पी एम)

आहट

कल तमाम रात
एक अजीब सी आहट
मेरे आस पास रही
जानती हूँ वो तुम नहीं थे
फिर वो कौन था,जो 
मेरे ख़यालों से गुज़रता रहा
कोई अक्स जहन में नहीं आता
बस एक सरगोशी सी महसूस होती है
जैसे किसी ने मुझे पुकारा हो ‘रश्मि’
बस एक एहसास अनूठे स्पर्श का
जैसे कोई मुझे छू कर गुज़र गया हो
सिमट जाती हूँ मैं अपने आप मैं
उठकर बैठ जाती हूँ बिस्तर पर
किसी सलवट का निशान तक नहीं
सिकोड़ लेती हूँ अपने पैरों को और
अँधेरों में उस साये को
ढूँढने की कोशिश करती हूँ
मगर कुछ नज़र नहीं आता
क्या हो गया है मुझे....
शायद मेरा हीं साया होगा
जो मुझे छू कर गुज़र गया
सच कहते हो तुम मुझे ‘बौराई’
‘रश्मि अभय’ (४ फरवरी २०१३,९:२० पी एम)

चौराहा

अचानक चलते चलते ठहर गई हूँ
कितने यकीन के साथ घर की 
दहलीज़ को पार किया था मैंने
सबकी नाराजगी को नज़रअंदाज़ करके
सिर्फ और सिर्फ तुम पर विश्वास किया 
क्षण भर में भूल गई मैं माँ के आँसू
बाबा की खामोशी और भाई की दलीलों को
जन्म से लेकर अब तक के सारे रिश्ते
सिर्फ खोखले नज़र आए सिवा तुम्हारे...
दीवानगी में खुद को रुसवा कर बैठी
सुनो जब तुम मुझे अपने घर का पता
बता रहे थे,तभी मुझे समझ जाना था
कि तुम्हारे अंदर सच्चाई नहीं है
साथ निभाना था तो घर साथ लेकर चलते
अपनी जिंदगी में मेरी पहचान बताते
तुमने तो सिर्फ ये कहा था कि ‘रश्मि’
जब तुम मेरे शहर पहुंचोगी तो एक चौराहा मिलेगा
वहाँ से मुड़ जाना...यहाँ तो बहुत सारे चौराहे हैं
मुझे किस चौराहे से किस तरफ मुड़ना होगा
ना तुमने बताया...ना मैंने पूछा
सच बौरा गई थी मैं जो तुम्हारे कलुषित हृदय को
समझ नहीं पाई...आज इस चौराहे पर खड़ी
मुझे सिर्फ एक हीं रास्ता दिख रहा है
जो मेरे बाबा के घर तक जाता है...हाँ
मेरे माँ बाबा हीं ऐसे हैं जो मुझसे
बिना कोई सवाल किए हृदय से लगा लेंगे
क्यूंकि मैं उनके जिगर का वो टुकड़ा हूँ
जिसे तुमने पत्थर समझ कर चौराहे पर फेंक दिया।

‘रश्मि अभय’ (५ फरवरी २०१३,४:०० पी एम)

दामन

कल तुम्हारा दामन
हांथों में आते आते
छूट गया...
देखा था मैंने तुम्हारी 
आँखों की नमी को भी
जो अपलक निहार रही थी
मेरी आँखों को...
कुछ ढूंढ रही थी मुझमे
पर शायद नाकामयाब रही थी
बस चंद कदमों का हीं 
फासला था...
मगर कितना लम्बा था
पलट कर चल दी थी मैं
तुम्हारी खोखली सी मुस्कुराहट को
अपने आप में समेट कर...
क्यूंकि मुझमें वो ताब नहीं थी
जो तुम्हारी मजबूर निगाहों का
सामना कर सके...
सुनो मैंने तुम्हें बहुत याद किया....!!!